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GST, Ease of Doing Business India 2024

ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस क्या है ? GST !!

Ease of Doing Business 2024 GST || आपको बता दे कि भारत सरकार द्वारा एक अथक प्रयास और एक बड़े कदम को उठाते हुए हुए एक निति जो ये है कि ‘ए क राष्ट्र, एक कर, एक बाज़ार’ (One Nation, One  Tax, One Bazar) की भावना को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आज़ादी के बाद वस्तु और सेवा कर जीएसटी (GST) अप्रत्यक्ष करों में लागू किया सबसे बड़ा सुधार है। जीएसटी लागू होने के साथ ही केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सेवा कर, मूल्यवर्द्धित कर ‘वैट’, क्रय कर, प्रवेश कर, केंद्रीय बिक्री कर, स्वायत्त निकाय कर, विलासिता कर, चुंगी इत्यादि अनेक केंद्रीय और राज्य कर समाप्त हो गए। इससे आर्थिक अवरोध कम हुए हैं और राष्ट्रीय स्तर पर एक संगठित अर्थव्यवस्था विकसित करने का रास्ता खुल गया। करों के मूल्यों पर पड़ने वाले तीव्र प्रभाव को कम करके जीएसटी ने पुरे व्यापार क्षेत्र में सुधार लाकर कारोबार को सरल-सुगम बनाने के उद्देश्य से बाज़ारों में स्पर्धा की भावना विकसित की है।

जीएसटी(Goods and Services Tax)

       हम यहाँ GST के बारे में  विस्तृत रूम में बात करेंगे।  भारत  सरकार द्वारा GST लागू करने के अनेक अनगिनत सफलता और सरता सामने आयी कई कठिनाइया दूर हुई नतीजा यह हुआ कि विगत छह वर्षों में जीएसटी का कर Base 67.8 लाख से बढ़कर करीब 1.4 करोड़ हो गया और अप्रैल, 2023 में 1,87,035 करोड़ रुपये का जीएसटी भारत सरकार के पास जमा हुआ जो अब तक का सबसे अधिक tax collection माना गया। November, 2023 में Monthly collection, 1,67,929 करोड़ रुपये रहा जिसमें ईयर ऑन ईयर(Year on year) अर्थात् वार्षिक वृद्धि के आधार पर सबसे ज्यादा टैक्स 15% का increament हुई।

जीएसटी भार को कम करने, सभी राज्यों मेंसामान के Free flow को सुनिश्चित करने, कानूनों, प्रक्रियाओं, कर की दरों, सामान्य परिभाषाओं और इंटरफेस को माल और सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) के माध्यम सुसंगत बनाने पर केंद्रित है, जिसके फलस्वरूप बोर्ड की work-Capacity बढ़ती है और आपस के तालमेल में भी बेहतरी आता है। इससे नियमों और प्रक्रियाओं को चलने में लागत कम की जा सकती है और विभिन्न कर अधिकारियों के लिए कई प्रकार के रिकॉर्ड रखने की जरूरत भी नहीं रहती। इस प्रकार करदाता को कम व्यवस्था और जनशक्ति लगाने की जरुरत पड़ती है।

जीएसटी की इतनी जबरदस्त कामयाबी का श्रेय इंटरनेट (कंप्यूटरीकरण) और ऑनलाइन  को दिया जा सकता है। किसी भी Business-circle के लिए पूंजीकरण आवेदन से लेकर रिटर्न दाखिल करने, रिफंड के लिए आवेदन करने, नोटिसों का जवाब देने, अपील दायर करने जैसे सभी कार्य ऑनलाइन हो जाने के कारण कर अधिकारियों से व्यक्तिगत रूप से संपर्क रखने का झंझट पूरी तरह समाप्त हो गया है। ‘कारोबार करने की सुगमता’ के यही आवश्यक घटक हैं।

जीएसटी पंजीकरण(GST Registration)

      GST Registration पैन(PAN) आधारित होता है और राज्यों के आधार किया जाता है। जो भी Business भारत भर में 40 लाख रुपये या अधिक मूल्य की (निर्दिष्ट राज्यों के लिए 20 लाख रुपये की) वस्तुओं की सप्लाई करे और 20 लाख रुपये मूल्य की (निर्दिष्ट राज्यों के लिए 10 लाख रुपये मूल्य की) सेवाएं प्रदान करे उसे जीएसटी पंजीकरण कराना पड़ता है। आवेदन के सात दिन के भीतर कर-प्रशासन को जीएसटी(GST) Registration Certificate जारी करनाजरुरी होता है; जोखिम वाली परिस्थितियों में आधार कार्ड से जुड़े प्रमाणीकरण या व्यक्तिगत पुष्टिकरण में अधिक समय लग सकता है। आकस्मिक/अप्रवासी करदाताओं तथा विदेशी राजनयिक मिशनों के जिन लोगों को भारत में कर नहीं देना पड़ता उनके लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। लगातार रिटर्न दाखिल न करने के कारण पंजीकरण रद्द किए जाने की स्थिति में सभी बकाया रिटर्न भरकर पंजीकरण को फिर शुरू करने की व्यवस्था उपलब्ध है जिससे करदाता का समय और मेहनत बच जाती है।

रिटर्न भरना(GST Return-filing) 

GST व्यवस्था में Tax payers को हर महीने कई रिटर्न दाखिल करनी होती है जैसे- बाहरी सप्लाई के लिए जीएसटीआर-1, भीतरी (इनवर्ड) सप्लाई के लिए जीएसटीआर-2ए/2बी (जो स्वतः भरी जाती है), कर भरने के लिए जीएसटीआर-3बी, और जीएसटीआर-9 में वार्षिक रिटर्न। ये सभी रिटर्न एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं- जब करदाता एक बार जीएसटीआर-1 दाखिल करता है तो इसमें की गई प्रविष्टियों के आधार पर जीएसटीआर-3बी की कई प्रविष्टयां स्वतः भर जाती हैं जिनमें जरूरी होने पर बदलाव किया जा सकता है। इसी प्रकार इनवर्ड रिटर्न (जीएसटीआर-2ए) भी संबंधित सप्लायरों की ओर से दाखिल जीएसटीआर-1 के आधार पर स्वतः ही भरी जाती है। कोई अंतर होने की स्थिति में GST Tax payers इस व्यवस्था से स्वयं ही सुधार की कार्रवाई कर सकते हैं।

देरी से दाखिल की गई रिटर्न के मामले में लेट-फीस और ब्याज का हिसाब भी सिस्टम में स्वतः हो जाता है। जीएसटीआर-1 और जीएसटीआर-3बी में GST Tax payers के बीच एक तय सीमा से ज्यादा अन्तर होने पर GST Tax payers को सिस्टम से ही सूचना मिल जाती है। इस अन्तर को ठीक करने की सुविधा भी GST Tax payers को उपलब्ध रहती है।

फिर, जीएसटीआर-2बी में उपलब्ध कराई आयकर रियायत से ज़्यादा जीएसटीआर में लेने का प्रयास किए जाने पर सिस्टम आगाह कर देता है ताकि GST Tax payers समुचित व्यवस्था कर सके। दो करोड़ रुपये तक का वार्षिक कारोबार करने वाले करदाताओं को ‘फॉर्म-जीएसटीआर-9’ भरने से छूट दी गई है। इसी प्रकार 5 करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार करने वाले करदाताओं को ‘फॉर्म जीएसटीआर-9सी’ में मिलान विवरण दाखिल करने की जरूरत अब नहीं रह गई है।

ई-वे बिल (E-Way Bill)

      ई-वे बिल (E-Way Bill) वस्तुएं भेजने-मंगाने (Import – Export) के लिए भरा जाने वाला  document है जिसमें भेजने वाले का नाम, प्राप्त करने वाले का नाम, ट्रांसपोर्टर का नाम, सामान भेजने का मूल स्थान और उसके गंतव्य स्थान का विवरण भरना होता है। पूरे देश के लिए इस बारे में मानकीकरण और समान नियम लागू होता है जिसके अंतर्गत वस्तुएं भेजने की शुरूआत करने वाले व्यक्ति को (कुछ विशेष वस्तुओं को छोड़कर) इस चीज की पूरी जानकारी पहले ही अपलोड करके जीएसटी पोर्टल पर ई-वे बिल (E-Way Bill) जेनरेट करना होगा। इससे वस्तुओं को भेजने-मंगाने (Import – Export) की प्रक्रिया तेजी से होती है, ट्रकों को बदलने में भी कम समय लगता है, तय की गई औसत दूरी बढ़ जाती है और लागत भी कम हो जाती है। इस व्यवस्था के लागू होने से पुरानी व्यवस्था में होने वाली सीमा चुंगी का झंझट भी खत्म किया जा चुका है। इससे एकीकृत अखिल भारतीय Supply – chain तंत्र स्थापित हुआ है। 

ई-इनवॉयस (E-Invoice)

ऐसे पंजीकृत व्यक्तियों के लिए ई-इनवॉयसिंग अनिवार्य है जिनका पूरे देश में पिछले वित्त वर्ष के दौरान वार्षिक कारोबार 5 करोड़ रुपये से ज्यादा रहा था। जीएसटी इनवॉयस को पंजीकरण पोर्टल- ‘आईआरपी’ पर भेजना होता है। रिपोर्ट मिलने पर आईआरपी एक विशिष्ट ‘इनवॉयस रेफ़्रेन्सनंबर’ (आईआरएन) के साथ डिजिटली हस्ताक्षरित ई-इनवॉयस भेजता है। यह इनवॉयस Receivers को क्यूआर (QR) कोड के साथ भेजा जाता है। ई-इनवॉयस से करदाता को अनेक लाभ मिलते हैं जैसे- जीएसटीआर-1 में इनवॉयसों की ऑटो-रिपोर्टिंग और जरूरी होने पर ई-वे बिल का ऑटो-जैनरेशन/ई-इनवॉयस से मानकीकरण और अंतर-संचालन क्षमता बनाने में मदद मिलती है जिससे आपसी कारोबार वाली पार्टियों केझगड़े भी कम होते हैं, भुगतान-चक्र बेहतर होता है, प्रोसेसिंग का खर्च कम होता है जिससे व्यापार की समग्र कुशलता भी बढ़ जाती है। वास्तव में ई-इनवॉयस व्यवस्था लागू होने से कागजों का इस्तेमाल न के बराबर रह जाता है जिससे व्यापार में होने वाला कार्बन उत्सर्जन भी कम रहता है।

रिफंड (Refund)

     मौजूदा नए टेकनोलॉजी व मशीनों के विस्तार और आधुनिकीकरण के लिए कार्य-पूंजी उपलब्ध कराने के लिए रिफंड की मंजूरी समय पर देना जरूरी है। जीएसटी व्यवस्था में रिफंड प्रक्रिया मानक, सरल, समयबद्ध और टेक्नोलॉजी-चालित होती है जिससे करदाता और कर-अधिकारियों के बीच व्यक्तिगत संपर्क की कम से कम जरूरत पड़े। निर्यात की जाने वाली वस्तु पर लगने वाले आईजीएसटी यानी इनपुट जीएसटी – का निर्यातक की ओर से कस्टम विभाग में दाखिल किए जाने वाले शिपिंग बिल तथा जीएसटीआर-1 और जीएसटीआर-3बी = के आधार पर पूरी तरह स्वचालित तरीके से रिफंड मिल जाता है। इसके लिए अलग से रिफंड का आवेदन नहीं करना पड़ता। निर्यातकों के दावे का 90 प्रतिशत रिफंड तो आवेदन के सात दिन के भीतर कर दिया जाता है।

सरकार व्यापार और उद्योग की तथा खासकर छोटे और मध्यम Tax payers की कठिनाइयों को समझती है। जीएसटी के सरल परिपालन के लिए अनेक व्यापार-अनुकूल पहलें की गई हैं:

पांच करोड़ रुपये से कम का कारोबार करने वाले करदाताओं के लिए एसएमएस (SMS) के जरिये ‘शून्य’ रिटर्न दाखिल करने और तिमाही रिटर्न तथा मासिक भुगतान (QRMP) योजना शुरू की गई है जिससे अब 24 की जगह सिर्फ 8 रिटर्न दाखिल करनी होती है। लगभग 89 प्रतिशत करदाता इस योजना का लाभ लेने के पात्र हैं और करीब 43 प्रतिशत करदाता इस योजना का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। साथ ही कम कर-दरों पर निर्धारित सकल वार्षिक कारोबार करने वाले वस्तु और सेवा क्षेत्र के छोटे व्यापारियों के लिए वैकल्पिक योजना भी शुरू की गई है।

ब्याज संबंधी उपाय

    केंद्रीय वस्तु और सेवा अधिनियम, 2017 (सीजीएसटी अधिनियम) की धारा 50 में 1 जुलाई, 2017 से संशोधन करके व्यवस्था की गई है कि गलत तरीके से लिए गए इनपुट टैक्स क्रेडिट पर ब्याज का भुगतान तभी करना होगा जब इसका लाभ उठाया गया है और साथ ही इसका उपयोग भी किया गया हो। इसके अलावा, गलत तरीके से प्राप्त और इस्तेमाल हो चुके आईटीसी पर लगने वाले ब्याज की दर भी जुलाई, 2017 से 24 प्रतिशत से घटाकर 18 प्रतिशत कर दी गई है।

रिफंड संबंधी उपाय

      इनवर्टेड रेटेड स्ट्रक्चर के कारण इस्तेमाल न किए गए आईटीसी के रिफंड का हिसाब लगाने के वास्ते सीजीएसटी नियमों के नियम 89(5) के अंतर्गत निर्धारित फॉर्मूले में संशोधन किया गया है। इससे इनवर्टेड रेटेड स्ट्रक्चर के कारण होने वाले रिफंड की राशि बढ़ जाएगी। कई स्थितियों में बिना पंजीकरण वाले व्यक्ति भी अस्थायी पंजीकरण लेकर रिफंड के लिए आवेदन कर सकते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स ऑपरेटर (E.C.O.) के माध्यम से सप्लाई के लिए करदाताओं के हितार्थ उपाय

छोटे करदाताओं को ईसीओ के माध्यम से वस्तुएं सप्लाई करने और इंट्रा-स्टेट (राज्यों के बीच) और इंट्रा-स्टेट (राज्यों के बीच) ऑफलाइन तथा ऑनलाइन वस्तुएं सप्लाई करने में समानता उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 01 अक्टूबर, 2023 से कारोबार के पंजीकरण की अनिवार्यता वाली शर्त हटा ली गई है। कंपोजिशन करदाता भी कुछ शर्तें पूरी करने पर ईसीओ के माध्यम से इंट्रा-स्टेट सप्लाई कर सकेंगे। इससे छोटे करदाताओं को बिना पंजीकरण लिए ही अपनी वस्तुएं बेचने के लिए विशाल ई-कॉमर्स बाजार उपलब्ध हो सकेगा।

नकदी प्रवाह बढ़ाने के उपाय 

    किसी पंजीकृत व्यक्ति के इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर (इलेक्ट्रॉनिक नकदी बही खाते) में इस्तेमाल न हुई शेष राशि उसी पैन-संख्या वाले गैर-पंजीकृत व्यक्ति के इलेक्ट्रॉनिक बही खाते में ट्रांसफर कर पाने का प्रावधान किया गया है। इससे उनकी तरलता यानी नकदी की उपलब्धता और नकदी प्रवाह में सुधार होगा।

Ease Of doing BUSINESS

निर्यातकों के लिए सुविधा (Facilities for All Exporters)

      निर्यातकों की बिना ड्यूटी  (क्रेडिट स्क्रिप) वाली सप्लाई के मामले में आईटीसी वापिस लौटाने की व्यवस्था भी समाप्त कर दी गई है। बिजली निर्यातकों की सुविधा के लिए बिजली निर्यात के कारण इस्तेमाल न की गई आईटीसी रिफंड करने के लिए भी संशोधन किए गए हैं।

करदाताओं की सुविधा के लिए यूपीआई और आईएमपीएस को जीएसटी भुगतान के अतिरिक्त साधन बना दिया गया है और सीजीएसटी नियमों के नियम 87 (3) में संशोधन करके कर भुगतान में सरलता और लचीलापन लाया जा रहा है। कर विवादों से जुड़ी मांगों को खत्म करने की व्यवस्था भी की गई है जिसके तहत सीजीएसटी अधिनियम की धारा 73 और 74 के अंतर्गत वार्षिक रिपोर्ट दाखिल करने की अंतिम तिथि के क्रमश: 3 और 5 वर्ष के भीतर अधिनिर्णय जारी करना होता था। कारोबार की सुगमता की दृष्टि से किए अन्य उपायों में अपील के आवेदन को किसी निश्चित अवधि के भीतर वापिस लेने का विकल्प; अस्थायी रूप से कुर्क की गई संपत्ति की एक वर्ष बाद स्वतः बहाली; जीएसटी की कुछ धाराओं को गैर-आपराधिक घोषित करना, आदि शामिल हैं।

सप्लायर द्वारा कर भुगतान न होने के मामले में आईटीसी वापिस लौटाने और फिर से उपयोग के लिए उपलब्ध कराने का तंत्र बनाने; लेट फीस की अधिकतम सीमा पर सशर्त आम माफी देने; सीजीएसटी अधिनियम की धारा 62 के तहत जारी सर्वश्रेष्ठ न्यायिक आकलन की कथित वापिसी; निर्धारित समय के भीतर अपील दायर न हो सकने के मामलों में मांग आदेश पर अपील की अनुमति देने जैसे उपाय; तथा टीसीएस सुविधा का स्पष्टीकरण; वारंटी की अवधि में हिस्से पुर्जे बदलने और मरम्मत सेवाएं देने संबंधी आईटीसी; मुख्य कंपनी की सहायक कंपनी में शेयरपूंजी पर कर लगाने; और इनपुट सेवा वितरक (आईएसडी) के बारे में स्पष्टीकरण वगैरह को भी व्यापार में शामिल किया गया है। हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में अनेक प्रकार के शिकायत निवारण मंच उपलब्ध हैं जिनमें केंद्र और संबंधित राज्य के सदस्य शामिल रहते हैं।

विश्व बैंक के ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस सूचकांक में देशों का आकलन करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले मुख्य मापदंडों में देश की कराधान प्रणाली अहम है। आर्थिक और कर सुधारों के बल पर ही भारत सूचकांक सूची में लगातार ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा है; इसका स्थान 2014 में 142वां था जबकि देश 2018 में 77वें स्थान पर आ गया तथा 2019 में 63वां स्थान प्राप्त कर लिया।

कंसल्टिंग फर्म डेट्रॉयट के हाल के सर्वेक्षण के अनुसार जीएसटी के बारे में करीब 70 प्रतिशत बिज़नेस लीडर्स ने बढ़ती हुई सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

इसमें सभी आकार के कारोबारों पर सकारात्मक प्रभाव का संकेत है जिनमें सूक्ष्म, लघु और मझौले (एमएसएमई) उद्यम जीएसटी का सर्वाधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। लगभग 88 प्रतिशत एमएसएमई प्रतिनिधियों ने वस्तुओं और सेवाओं की लागत कम होने का तथ्य स्वीकार किया है और इसका श्रेय जीएसटी व्यवस्था की अधिक समानता पर आधारित प्रणाली को दिया गया है। उद्योग और घरेलू व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) की व्यापक सुधार कार्य-योजना, 2020 में भी देशभर में व्यापार की सुगमता में महत्वपूर्ण सुधार का संकेत दिया गया है।

नई कर प्रणाली जीएसटी अपनाने में आए शुरूआती झटकों के बावजूद इसे कारोबार को सुगम बनाने की दिशा में और सप्लाई चेन की कुशलता सुधारने की दृष्टि से अहम बदलाव माना गया है। करदाताओं के लिए नियम-परिपालन का बोझ कम करने पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है। अप्रत्यक्ष कर सुधारों के पीछे की असल भावना, उसके क्रियान्वयन तथा करदाताओं पर उसके अपेक्षित प्रभाव में कोई कसर या खामी नहीं है। जीएसटी तंत्र की अपनी कुछ खामियां हो सकती हैं लेकिन इसके फायदे कहीं ज्यादा हैं और नुकसान काफी कम । जीएसटी परिषद् के सप्रयासों के फलस्वरूप यह प्रणाली अधिक समानता पर आधारित और कुशल बन सकी है जिससे यह सुधारात्मक उपाय इतनी बड़ी सफलता पा सका है। …Read  more 

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