सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड (Electoral Bonds) योजना को रद्द किया 2024, इसे बताया 'असंवैधानिक': यह क्या है और चुनावी फंडिंग से कैसे जुड़ा है? Breaking News YOJANAAAYOG.COM

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड (Electoral Bonds) योजना को रद्द किया 2024, इसे बताया ‘असंवैधानिक’: यह क्या है और चुनावी फंडिंग से कैसे जुड़ा है? Breaking News

बता दे कि चुनावी बांड (Electoral Bonds) योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के बाद अब सुप्रीम कोर्ट इसकी समय अवधि पर अपना फैसला सुनाने की तैयारी कर रहा है। यह योजना व्यक्तियों और कंपनियों को राजनीतिक दान के लिए बांड खरीदने के लिए, टैक्स माफी के लिए और फण्ड लेने और देने वाले की मौजूदगी की पेश करने की अनुमति देती है। इस मुद्दे पर अन्य पर आलोचकों का मानना यह है कि यह योजना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है और पारदर्शिता का उल्लंघन करती है, जबकि सरकार का दावा है कि यह चुनावों में अवैध धन के उपयोग को रोकती है। यह फैसला पिछले नवंबर में एक बेंच द्वारा फैसला सुरक्षित रखे जाने के बाद आया है।

15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना की समय सीमा को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर अपना आखिरी फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश इंदा डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया, जिससे उस योजना को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया गया, जिसने राजनीतिक दलों को अज्ञात फंडिंग की अनुमति दी थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि पोल बांड मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और वह छुपे काले धन पर रोक लगाने का एकमात्र उपाय नहीं हैं।

राजनीतिक फंड्स में पारदर्शिता बढ़ाने की पहल के तहत, सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को कार्यक्रम की घोषणा की थी और इसे राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले पैसों के योगदान का विकल्प बताया गया था। योजना के नियम व शर्तो के अनुसार, केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हो सकते है और जिन्हें लोकसभा या राज्य विधान सभा के पिछले चुनावों में कुल वोट का कम से कम 1 प्रतिशत वोट प्राप्त हुआ हो। सिर्फ वे ही पार्टियां यहफंडिंग प्राप्त करने के योग्य माने जायेंगे।

आखिर ये चुनावी बांड (Electoral Bonds) क्या हैं?

चुनावी बांड (Electoral Bonds) एक तरह का वित्तीय साधन हैं जो वचन पत्र या वाहक बांड के रूप में कार्य करते हैं। इन्हें भारत में व्यक्तियों या कंपनियों द्वारा विशेष रूप से राजनीतिक दलों को धन देने के लिए खरीदा जा सकता है। ये बांड भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा जारी किए जाते हैं और ₹1,000, ₹10,000, ₹1 लाख, ₹10 लाख और ₹1 करोड़ के गुणकों में बेचे जाते हैं। इस योजना के तहत कॉर्पोरेट और यहां तक ​​कि विदेशी संस्थाओं द्वारा किए गए दान पर 100% कर छूट का आनंद मिलता है, जबकि दानदाताओं की पहचान बैंक और प्राप्तकर्ता राजनीतिक दलों दोनों द्वारा गोपनीय रखी जाती है।

दान कैसे किया जाता है (Know How are Donations Made)

किसी राजनीतिक पार्टी को दान देने के लिए किसी खाते के माध्यम से जिनका केवाईसी (KYC) पूरा हो, बांड खरीदे जा सकते हैं। एक बार धन transfer हो जाने के बाद, उस राजनीतिक दलों को प्राप्त किया हुआ फण्ड एक निश्चित समय के भीतर वापस करना होता है। विशेष रूप से अगर देखा जाये तो, किसी व्यक्ति या कंपनी द्वारा खरीदे जाने वाले चुनावी बांड की संख्या की कोई limit तय नहीं की गयी है।


चुनावी बांड के माध्यम से कौन धन प्राप्त कर सकता है?

चुनावी बांड (Electoral Bonds) योजना के नियम व शर्तो के अनुसार, केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हो सकते है और जिन्हें लोकसभा या राज्य विधान सभा के पिछले चुनावों में कुल वोट का कम से कम 1 प्रतिशत वोट प्राप्त हुआ हो। सिर्फ वे ही पार्टियां यहफंडिंग प्राप्त करने के योग्य माने जायेंगे।


क्या है चुनावी बांड योजना (Electoral Bonds Scheme) और पूरा मामला

Electoral Bonds Supreme Court
Supreme Court

चुनावी बांड (Electoral Bonds) योजना की घोषणा पहली बार पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली जी ने साल 2017 के बजट सत्र के दौरान की थी। और फिर बाद में इसे साल जनवरी 2018 में वित्त अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन के द्वारा इसे राजनीतिक फंडिंग के स्रोत के रूप में निर्धारित किया गया था। चुनावी बांड (Electoral Bonds) योजना को लागू करने के लिए, केंद्र सरकार ने कंपनी अधिनियम(Companies Act), आयकर अधिनियम (Income Tax Act), विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA), और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में संशोधन किए। चुनावी बांड (Electoral Bond) योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह को संबोधित करते हुए,बेंच ने दो विषेश मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया कि क्या योजना ने अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन किया है ? और क्या असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग ने स्वतंत्र और निष्पक्ष के सिद्धांतों को कमजोर कर दिया है? इस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच ने स्पष्ट रूप से फैसला सुनाया कि अज्ञात चुनावी बांड (Electoral Bonds) सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(A) का उल्लंघन करते हैं।


योजना की संवैधानिक अवधि के खिलाफ CPI(M), कांग्रेस और कुछ गैर सरकारी संगठनों (NGOs) सहित सुप्रीम(SC) कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं। सुनवाई पिछले साल 31 अक्टूबर 2023, को शुरू हुई थी, जिसमें इसकी समय सीमा और इससे देश को होने वाले संभावित खतरे पर अटकले लगायी गईं। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, यह योजना सूचना के अधिकार (Right to Information) का उल्लंघन करती है, फर्जी कंपनियों के लिए दरवाजे खोलती है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने चिंता जताई कि एक राजनीतिक दल चुनाव के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए दान का उपयोग कर सकता है। जो कि देश को काफी मुश्किलों में दाल सकता है और Capital का दुरूपयोग हो सकता है, हालाँकि, केंद्र ने कहा है कि यह योजना पारदर्शिता सुनिश्चित करती है और चुनावों में अवैध धन के उपयोग पर एक शक्तिशाली रोक है।

2 जनवरी, 2018 को सरकार द्वारा पेश की गई, चुनावी बांड (Electoral Bonds) योजना का उद्देश्य स्पष्ट रूप से राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाना और नकद दान का विकल्प प्रदान करना था। योजना के नियम व शर्तों के मुताबिक, केवल कुछ विशिष्ट मानदंडों को पूरा करने वाले राजनीतिक दल ही चुनावी इस फण्ड को प्राप्त करने के योग्य थे, जो धन योगदान के लिए साधन के रूप में कार्य करते थे। सरकार के इस दावे के बावजूद कि यह योजना पारदर्शी थी, आलोचकों ने राजनीतिक क्षेत्र में काले या बेहिसाब धन के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने की इसकी क्षमता के बारे में चिंता जताई।उन्होंने कहा की यह बांड भ्रष्टाचार और इस पैसों का भरी दुरूपयोग किया जा रहा है। 2017 और 2016 के वित्त अधिनियम के माध्यम से पेश किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सर्वोच्च न्यायलय(Supreme Court) के समक्ष ख़ारिज की गयी थीं, आलोचकों का तर्क था कि इन संशोधनों ने राजनीतिक दलों की अनियंत्रित और असीमित फंडिंग बड़ा रास्ता खोला है।

अदालत ने राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर दिया, यह बताते हुए कि चुनावी बांड (Electoral Bonds) के माध्यम से कॉर्पोरेट योगदान देने वालो के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए, इस तरह के दान से जुड़े बदले की अंतर्निहित अपेक्षाओं को देखते हुए। कंपनी अधिनियम में संशोधन, जिसमें कंपनियों द्वारा असीमित राजनीतिक योगदान की अनुमति दी गई थी, को मनमाना और असंवैधानिक मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे प्रावधानों ने अनुचित प्रभाव के द्वार खोल दिए और चुनावी प्रक्रिया की गड़बड़ी का वजह बना।

सूचना के अधिकार पर अतिक्रमण के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि इस अधिकार के किसी भी उल्लंघन को उचित नहीं ठहराया जा सकता, खासकर काले धन पर अंकुश लगाने के प्रयास में। इस मामले के तह तक जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतिम डिसीजन में, अब से बैंकों को चुनावी बांड (Electoral Bonds) जारी करना तुरंत बंद करने का आदेश दिया। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को विशेष रूप से राजनीतिक दलों द्वारा दिए गए चुनावी बांडों का Details देने का निर्देश दिया गया, साथ ही भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए इन विवरणों को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने का आदेश दिया गया था। यह फैसला एक लंबी कानूनी लड़ाई का अंत है, जिसमें पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले वर्ष 2 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। …Read more

Leave a Comment